मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

हिंदी - रक्षक हिंद के 🦚 [ दोहा -गीतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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राजनीति   की  आग  में, तपते  रचनाकार।

सेंकें  अपनी  रोटियाँ,  बने काव्य के  भार।।


नेताजी की  देह  पर,लगता नित   नवनीत,

मानद शोध उपाधि ने,दिया उन्हें अब तार।


नित्य कलम घिसता रहा,पाया एक न शाल,

सनद संग उनको मिले,स्वर्ण जटित उपहार।


तिलक छाप मस्तक सजे, सेत बगबगे  वेश,

यात्रा करने को मिली,सुमन सुसज्जित कार।


हिंदी  में   कविता  करें, अंग्रेज़ी   के   बोल,

भड़के मक्का भाड़ में, किड़बिड़ भाषाचार।


हिंदी  के   पटु  पक्षधर,  धोती कुर्ता    धार,

कविता टीपें और की, करते विश्व - विहार।


छपवाए  हैं  ग्रंथ  भी,शुद्ध स्वचोरित  लेख,

टोका  भी  यदि  आपने, ताल ठोंक  तैयार।


चिंघाड़ें  चढ़  मंच पर, हम ही तो   वे  लोग,

हिंदी- रक्षक हिंद के,  करती दुनिया   प्यार।


वाह!वाह!!जो  कर सकें,चेले पले  अनेक,

'शुभम' साथ में चल रहीं, मधूलिकाएँ चार।


🪴 शुभमस्तु !


१३.१२.२०२१◆१.३० पतनम

मार्तण्डस्य।

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