बुधवार, 29 दिसंबर 2021

शीत - शृंगार 🧶 [ दोहा ]

 

[स्वेटर,शाल,कंबल,रजाई, अँगीठी]

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✍️ शब्दकार ©

🧶 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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      ❄️ सब में एक ❄️

धूप  सेंकती शिक्षिका, छोड़ न कक्षा आज।

मिल के स्वेटर प्रिय लगें,ऐसा हुआ समाज।।

जाड़े की सौगात हैं,  स्वेटर कंबल,   शाल।

गजक तिलकुटी खाइए,गरम शीत के माल।।

शाल ओढ़ रविकर चले,कंबल  ओढ़े चाँद।

वन-पशु भी हैं जा छिपे, अपनी-अपनी माँद।

श्वेत शाल धारण किए, निकली शीतल धूप।

सलिल गुनगुना दे रहे,सरिता, सागर , कूप।।

कंबल में रुकता नहीं,पूस माह  का  शीत।

दादी  पोते  से कहे,कब  हो ठंड   व्यतीत।।

कंबल-कंबल  शीत है, बाहर  चादर  तान।

पड़ी झोंपड़ी खेत में,सोया निडर  किसान।।

रुई  रजाई  में   भरी, सुख देती    भरपूर।

शीत कहे मैं क्या करूँ, खड़ा हुआ  हूँ  दूर।।

उठा रजाई जा  रहे,  बंदर जी    ससुराल।

साली बोली कष्ट  क्यों, करते  जीजा लाल।।

लाल अँगीठी देखकर,चूल्हा   देता  सीख।

निज उर में तू धीरधर, करे नहीं मुखचीख।।

बात-बात की बात है,समय समय का खेल।

गया अँगीठी काल अब, बिजली की है रेल।


      ❄️ एक में सब ❄️

कंबल स्वेटर शाल का,मौसम आया शीत।

ओढ़  रजाई  तापती, गरम अँगीठी  गीत।।


🪴 शुभमस्तु !


२९.१२.२०२१◆६.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

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