सोमवार, 27 दिसंबर 2021

गधों के पीछे अश्व हैं 🐴🦄 [ मनहरण घनाक्षरी ]


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🪴 शब्दकार ©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

सबै  दिन  गए  बीत,पूरौ  गयौ साल  रीत,

पूस  मास  बढ़ो  शीत, नई साल आई  है।

प्रीति-रीति की बयार,आवै नित्य ही बहार,

निरोगी हों देह  द्वार ,देश  को बधाई   है।।

राजनीति   हो  पवित्र, बदलै  बुरौ   चरित्र,

दुर्गंध  दे  न  ये इत्र, कैसौ  रे सखाई   है।।

                        -2-

विश्व - गुरु बनों  देश,बिंदु छाप बढ़ा  केश,

रंग -  रंग  बने   वेश, क्यों पतिआवें  हम।

पंडित जी हू ज्ञानी हू, चोर ठग कृपानी हू, 

महल मंच छानी  हू, वे  नहीं  नेंक  कम।।

बारहों मास होली है,पंक लसित बोली  है,

दिखें वे रिक्त झोली  है, बोलते  बम - बम।।

कौन अभिनेता आज,औऱ कौन नेता आज,

सजे- धजे  नित्य साज, एकांती  छमछम।।

                        -3-

मतमंगतों  कौ  रेला,करें नित्य नव  खेला, 

एक गुरू  लाख चेला, बढ़ी   सठियाई  है।

करै कोऊ खूब चंदा,डारि लालच कौ फंदा, 

एक  नेक चार  गुंडा, गाँव  में   रौताई है।।

जाय  होटल में  शाम,ठर्रा संग में   विश्राम,

नेकनीयत    हराम,  कामिनी मिताई     है।

आयौ नयौ - नयौ रंग,मति होउ  सुनि  दंग,  

थोड़ी - थोड़ी ली भंग, गालनु  लुनाई    है।।

                        -4-

चूल्हा चौकी चौपाल में,चाय पान टाल  में,

खेत कुंजनु ताल में,काली  काई  छाई  है।

राम, श्याम, हर, हरी,बाजार भैंस, बेकरी,

व्यापार,बंज,  नौकरी, जीत बड़ी  पाई है।।

ये देश रंगशाला है,संमोह  एक  डाला   है,

बूढ़ों  की तप्त ज्वाला  है, गुप्त गरमाई  है।

सुनीति क्याअनीति क्या,ईमान बेईमान क्या,

सुसत्य या असत्य क्या,राजसी  लुनाई  है।।

                        -5-

नहीं चरित्र - चारुता,न  शेष  ही   उदारता,

है  बोलबाला स्वार्थ का, हुंकार  डंकार है।

न मान मातृ पितृ का,न नेह बंधु  मित्र  का,

सर्वत्र  कु   चरित्र का,  अनंत फुंकार     है।।

न धर्म कर्म शेष है, अघ -ओघ विशेष   है,

अंधी अधीर   मेष   है,भींकती भिंकार   है।।

गधों के पीछे अश्व हैं,भले गधे यों  ह्रस्व   हैं,

कुर्सीत्व मात्र लक्ष्य है,हस्ती की  चिंघार है।।


🪴 शुभमस्तु !


२६.१२.२०२१◆७.००पतनम मार्तण्डस्य।

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