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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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सारा आलम सोच रहा है
अपने कल के बारे में।
सोच रहा है कौन आज भी
धरती जल के बारे में।।
भैंस नहाती समर चलाकर
नाले में बर्बाद सलिल,
खाद लगाई विष फैलाया
क्या भूतल के बारे में!
खूब जलाएँ कृषक पराली
अब अपराध नहीं है ये,
फैला धूम भले मर जाएँ
क्या कुछ फल के बारे में!
बिना मिलावट नहीं कमाई
लीद महकती धनिए में,
नहीं प्रशासन कुछ बोलेगा
ऐसे खल के बारे में।
नरक पालिका पाल रही है
नरक नासिका के नीचे,
कुर्सी वाले क्यों बोलेंगे,
जनता - छल के बारे में।
कंकरीट के जंगल पनपे
बंदर को भी छाँव नहीं,
फुरसत नहीं सोचने की अब
वट - पीपल के बारे में।
धूल उड़ रही पनघट-पनघट
चुल्लू में भी नीर नहीं,
कौन विचारेगा पानी के
सूखे नल के बारे में।
नेताजी ने आग लगाई
जातिवाद की भारत में,
कौन बुझाने की सोचेगा
जलती झल के बारे में।
'शुभम' बाँटते ध्यान देश का
विकट समस्या हावी है,
मतमंगे क्या दे पाएँगे
उज्ज्वल कल के बारे में।
🪴शुभमस्तु !
१९.१२.२०२१◆२.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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