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✍️ शब्दकार©
🍒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पनिहारिन को देख रहा है अपनी घरनी देख
नज़रों में मैलापन तेरे अपनी करनी देख।।
जो आता वह जाता भी है क्यों खुश होता है,
बाट जोह तू उस दिन की अपनी मरनी देख।
दरिया में बहते तिरते हैं लाखों मानुस जीव,
तू भी एक मुसाफ़िर प्यारे अपनी तरनी देख।
देख सेहरा सर पर उसके क्यों मुरझाता है,
वर तुझको भी होना होगा अपनी वरनी देख
वे कोयल या चील टिट्टिभी क्या सोचे मन में,
तेरे घर में उछले - कूदे अपनी हिरनी देख।
उसके घर में सोना -चाँदी या हैं गायें, भैंस,
जा तू घर की घी अचार की अपनी बरनीदेख
खाता कोई दूध , मलाई या मोटी रोटी,
भोर साँझ जो तुझे सुहाती अपनी चरनी देख
आसमान में लगा थेगड़ी सिलता तू इंसान,
जिस पर पाँव रखे हैं तूने अपनी धरनी देख।
शुभं उठाता अँगुली टेढ़ी रोज़ किसी की ओर
दीदे खोल हिये के अपनी करनी भरनी देख।
🪴 शुभमस्तु !
१२.१२.२०२१◆९.१५ आरोहणं मार्त्तण्डस्य।
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