रविवार, 12 दिसंबर 2021

ग़ज़ल 🤡


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✍️ शब्दकार ©

 🤡 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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खुश   खिलौनों    में   मगन  है  आदमी।

खेल  का    मंगल     शगुन   है  आदमी।।


झुनझुना    माँ - बाप   ने  जब से   दिया,

तब  से  खिलौनों  में  लगन  है  आदमी।


पालतू      जोरू     खिलौना  रोज    की,

कार,  बँगले     में    हवन     है  आदमी।


खेलता      है     रोज़   वह औलाद   से,

कर   रहा   भरसक   जतन  है   आदमी।


अक्ल    से      इंसान    बच्चा  ही    रहा,

हम्माम  में   बिलकुल   नगन  है  आदमी।


खेलने   से      मन    नहीं   भरता   कभी,

ख्वाब  में     नाख़ुश  भगन    है   आदमी।


कौन   कहता  है  'शुभम'  वह बढ़     गया,

एक     बालक    का    जहन  है  आदमी।


🪴 शुभमस्तु !


१२.१२.२०२१◆४.३० पतनम

मार्तण्डस्य।

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