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✍️ शब्दकार ©
🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रहता हूँ छान पुरानी में।
भीगा रहता मैं पानी में।।
अपने घर में संतोष मुझे,
खोया हूँ कलम -कहानी में।
करती हैं नित उपकार बड़े,
कृतकृत्य चरण माँ रानी में।
कुछ पता नहीं क्या पुण्य किया,
बस खोया रहता बानी में।
जन-जन का हो कल्याण सदा,
हों शब्द भाव उर - घानी में।
गोमुखी भाव - गंगा की जो,
देता हूँ श्रेय जुबानी में।
गुरु,माँ,पितु का आशीष सदा,
हो निसृत 'शुभम' मुहानी में।
🪴 शुभमस्तु !
१९.१२.२०२१◆११.००आरोहणं मार्तण्डस्य।
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