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✍️ शब्दकार ©
🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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नमक, मिर्च, गुड़, आम, करेला।
हरड़ कसैली षटरस मेला।।
लवण , तिक्त , माधुर्य तीन रस।
अम्ल, कटुक , कषाय ले मानुस।।
उद्भिद, सौवर्चल अरु पाँगा।
भोजन में जब कम था माँगा।।
सैंधा , रोमक , जल सागर से।
उत्पादित सब लवण जतन से।।
चंदन, मिर्च , अतीस , कटेरी।
वच , पटोल, खस तिक्त घनेरी।।
घी , केला , गुड़ , दूध , फालसा।
किसे न मधु की लगे लालसा।।
द्राक्षा, जीवक , बला , शतावर।
महुआ, नारिकेल हैं मधुतर।।
कमरख, कैथ , करौंदा, इमली।
दही, आम, नीबू भी अम्ली।।
दाड़िम, छाछ , अम्लीय आँवला।
हरा - भरा नित , नहीं साँवला।।
हींग, पिप्पली , सौंठ , भिलावा।
लहसुन , नीम , करेला भावा।।
चित्रक, चव्य , गिलोय कटुक रस।
देते जगा देह की नस - नस।।
रस यह छठा अबाध कसैला।
करें न इससे मन को मैला।।
गूलर , गेरू , शहद , बहेड़ा।
मुक्ता, पद्म नहीं हैं पेड़ा।।
खैर, कदम्ब, प्रवाल, हरड़ फल।
आयुर्वेदिक है उज्ज्वल कल।।
'शुभम' षटरसों की यह माया।
वात , पित्त , श्लेष्म तन छाया।।
बना संतुलन षटरस पाएँ।
अति से सदा मुक्ति अपनाएँ।।
🪴 शुभमस्तु !
०९.१२.२०२१◆१.००
पतनम मार्तण्डस्य।
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