गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

षटरस का संसार 🌿 [ चौपाई ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नमक,   मिर्च,   गुड़,    आम, करेला।

हरड़      कसैली        षटरस  मेला।।

लवण , तिक्त ,    माधुर्य    तीन   रस।

अम्ल,   कटुक ,  कषाय   ले मानुस।।


उद्भिद,     सौवर्चल       अरु  पाँगा।

भोजन   में   जब   कम   था माँगा।।

सैंधा , रोमक ,    जल     सागर   से।

उत्पादित  सब  लवण   जतन  से।।


चंदन,       मिर्च ,      अतीस , कटेरी।

वच ,   पटोल,   खस  तिक्त    घनेरी।।

घी ,   केला ,    गुड़ ,    दूध , फालसा।

किसे   न    मधु   की    लगे  लालसा।।


द्राक्षा,    जीवक ,      बला , शतावर।

महुआ,    नारिकेल        हैं  मधुतर।।

कमरख,    कैथ ,      करौंदा, इमली।

दही,     आम,    नीबू     भी अम्ली।।


दाड़िम,     छाछ ,   अम्लीय  आँवला।

हरा  -   भरा     नित ,   नहीं  साँवला।।

हींग,       पिप्पली ,    सौंठ , भिलावा।

लहसुन ,     नीम ,      करेला  भावा।।

 

चित्रक,   चव्य ,   गिलोय कटुक   रस।

देते   जगा    देह   की     नस -  नस।।

रस    यह     छठा     अबाध  कसैला।

करें  न    इससे     मन     को   मैला।।


गूलर ,       गेरू ,       शहद ,  बहेड़ा।

मुक्ता,   पद्म       नहीं       हैं   पेड़ा।।

खैर,  कदम्ब,    प्रवाल,   हरड़ फल।

आयुर्वेदिक      है      उज्ज्वल  कल।।


'शुभम'   षटरसों     की     यह  माया।

वात , पित्त ,   श्लेष्म      तन   छाया।।

बना     संतुलन          षटरस   पाएँ।

अति   से    सदा       मुक्ति अपनाएँ।।


🪴 शुभमस्तु !


०९.१२.२०२१◆१.००

पतनम मार्तण्डस्य।

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