बुधवार, 1 दिसंबर 2021

देहांग - रंग 💃🏻 [ दोहा ]


[ आँचल,आनन,अलक,आँखें, अधर ]

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✍️ शब्दकार ©

💃🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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        ❤️ सब में एक ❤️

आँचल ढँक स्तन्य दे,सुत को दिया सुनेह।

जननी  मेरी  धन्य है, धन्य मातृ  भू  गेह।।


आजीवन रक्षा करूँ,मिला जननि से प्यार।

त्राता आँचल मात का,ईश दत्त  उपहार।।


हूल हिए आनन खिला,देखा मुख नवजात।

प्रसव वेदना भूलकर,जननी-हृदय प्रभात।।


सजी सेज सौभाग्य की,देख प्रियानन कंज।

परिणीता खिलने लगी,भूल विदा का रंज।।


अलकें सुत  की देखकर,माता  हुई प्रसन्न।

हाथ  फेरती शीश पर,आनन तर  प्रच्छन्न।।


अलकें झुकीं ललाट पर,घुँघराली दो चार।

मात यशोदा कान्ह पर,देती निज को  वार।।


दो आँखें दो खिड़कियाँ, तन मन के दो द्वार

प्रति पल  झाँके  आत्मा, करे मौन   उद्गार।।


आँखें उर  के भाव की,ईश दत्त   उपहार।

नेह क्रोध की सरित है,अविरत बहती धार।।


अधरामृत ज्यों ही पिया,नयन  हो  गए बंद।

तन-मन  में नर्तन करें,नव दंपति  के  छंद।।


भूली सुधि तन की सभी,युगल अधर का मेल

सीमा  भंजित  हो  गई, करते दंपति   खेल।।


              ❤️ एक में सब ❤️

आँखें आनन ढाँक कर,

                आँचल -पट की   ओट।

अलकें बाहर झाँकतीं,

                     बनते  अधर पपोट।।


पपोट=आच्छादन।


🪴 शुभमस्तु !


०१.१२.२०२१◆७.३० आरोहणं मार्तण्डस्य।

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