रविवार, 5 दिसंबर 2021

ग़ज़ल 🌻


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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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बिगड़ा-बिगड़ा है तार देश की जनता   का।

कैसे अब  करें सुधार  देश   की जनता का।।


हर  ओर   धुँआँ   ही  धुँआँ दिखाई  देता  है,

अब  नहीं  बचा है प्यार  देश की जनता का।


आज़ादी   का   नाम   महज़ मनमानी   ही,

मर  गया  दिली इक़रार देश की जनता का।


छल- बल  से  ताकत जिसने यहाँ बटोरी है,

क्यों खुले प्रगति का द्वार देश की जनता का!


बहुमत  मिलना ही सदा नहीं काफ़ी  होता,

जीते दिल को सरकार देश की जनता का।


आस्तीन    के   साँप    पालते लोग    यहाँ,

कैसे  हो   सत   उद्धार  देश की जनता  का।


साधन अपनाकर अशुभ 'शुभम'क्या पाएगा,

होगा  क्यों  बेड़ा  पार  देश की जनता  का।




🪴 शुभमस्तु !


०५.१२.२०२१.◆ ११.००

आरोहणं मार्तण्डस्य।

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