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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
रहता भारत देश में,भक्ति भाव सह प्रेम।
जननी भूमा उर बसीं,सदा धरा पर क्षेम।।
सदा धरा पर क्षेम,बह रही निर्मल गंगा।
हिमगिरि प्रहरी एक,पखारे निधि बहुरंगा।।
'शुभं'निरंतर पाद,सिंधु दक्षिण दिशि बहता
हिंदी मेरे बोल ,काव्य लिखता मैं रहता।।
-2-
मेरा भारतवर्ष ये, षटऋतुओं का देश।
बहुभाषी रहते मनुज,बदल- बदल तन-वेश।
बदल-बदल तन-वेश,शरद ऋतु पावस न्यारी
शिशिर, वसंत,निदाघ,हृदय हेमंत सुखारी।।
जायद,रबी ,खरीफ,'शुभम' फसलों का घेरा।
फल, सब्जी, पुष्पान्न, उगाए भारत मेरा।।
-3-
पहने बाना धर्म का, जमे अंधविश्वास।
अहित हमारा नित करें,जन के मन में वास।
जन के मन में वास,उबरना ही क्यों चाहें।
प्रगति - द्वार हैं बंद, बंद उन्नति की राहें।।
'शुभम' बेड़ियाँ मंजु, बनी नारी के गहने।
बंद पुरुष के नैन, लुभाते जो वह पहने।।
-4-
पोंगापंथी सिर चढ़ी,नित्य नवलतम ढोंग।
पढ़े -लिखे पीछे चलें,आगे - आगे पोंग।।
आगे - आगे पोंग, भ्रमित की जनता सारी।
भय का नित आतंक,बढ़ाता जन बीमारी।
'शुभम' निरक्षर नीति, पढ़ाते बनते ग्रंथी।
मानुस ही आहार , सिखाते पोंगापंथी।।
-5-
चमके तिलक ललाट पर,संमोहन का जाल।
आम जनों को चूसते,फैला कर भौकाल।।
फैलाकर भौकाल, फेरते उलटी माला।
मूढ़ वासना - दास, ढूँढ़ते कंचन बाला।।
'शुभं'काम के कीट,दाम दिखला कर दमके ।
बीच सरित की धार,नाव के अंदर चमके।।
🪴 शुभमस्तु !
१६.१२.२०२१◆१२.०५
पतनम मार्तण्डस्य।
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