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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपना किसान प्यारा।
भगवान है हमारा।।
खाद्यान्न दूध देता।
इस भूमि का विजेता।।
आलू के संग मूली ।
सरसों है खूब फूली।।
जीना अभाव का है।
घर संग बूढ़ी माँ है।।
थिगली भरी है साड़ी।
हर काम में अगाड़ी।।
अम्मा वही हमारी।
प्राणों से हमको प्यारी।।
वे नाव हम सवारी।
हैं जिंदगी हमारी।।
गंगा वे हम किनारा।
कृश कृषक है हमारा।।
🪴 शुभमस्तु !
२१.१२.२०२१◆ ३.३०
पतनम मार्तण्डस्य।
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