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✍️ शब्दकार ©
👨🎤 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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बाल हमारे काले - काले।
सीधे हैं कुछ के घुँघराले।।
तेल महकता खुशबू वाला।
मेरी माँ ने सिर में डाला।।
कंघी से काढ़े मतवाले।
बाल हमारे काले - काले।।
मुनिया के हैं लंबे कितने।
झूम रहे कंधों पर इतने।।
कभी लगे मकड़ी के जाले।
बाल हमारे काले - काले।।
गुहती मुनिया की माँ चोटी।
दो - दो कभी, कभी हो मोटी।।
फीता लाल चुटीले वाले।
बाल हमारे काले - काले।।
कमर ढँकी मुनिया की माँ की।
लगती मोहक सिर की झाँकी।।
बादल जैसे घने निराले।
बाल हमारे काले - काले।।
बाल हमारे माँ कटवाती।
नाई से कैंची चलवाती।।
नहीं फेंकना नाली - नाले।
बाल हमारे काले - काले।।
🪴 शुभमस्तु !
१७.१२.२०२१◆३.०० पतनम मार्तण्डस्य।
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