शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

बाल हमारे 👨‍🎤 [ बालगीत ]


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

👨‍🎤  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

बाल       हमारे       काले -  काले।

सीधे     हैं    कुछ       के  घुँघराले।।


तेल       महकता     खुशबू  वाला।

मेरी    माँ    ने     सिर    में डाला।।

कंघी        से       काढ़े    मतवाले।

बाल        हमारे       काले - काले।।


मुनिया    के       हैं     लंबे कितने।

झूम      रहे     कंधों    पर   इतने।।

कभी    लगे    मकड़ी     के  जाले।

बाल        हमारे       काले - काले।।


गुहती    मुनिया     की     माँ चोटी।

दो - दो     कभी,    कभी   हो मोटी।।

फीता        लाल      चुटीले    वाले।

बाल      हमारे       काले   -  काले।।


कमर   ढँकी    मुनिया    की माँ की।

लगती    मोहक    सिर   की झाँकी।।

बादल      जैसे          घने    निराले।

बाल        हमारे        काले -  काले।।


बाल        हमारे        माँ    कटवाती।

नाई         से         कैंची    चलवाती।।

नहीं         फेंकना       नाली -  नाले।

बाल       हमारे          काले -  काले।।


🪴 शुभमस्तु !


१७.१२.२०२१◆३.०० पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...