गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

अवनि से अंबर 🦋 [ दोहा ]

 

[अवनि, अंबर, अगहन,पूस,फसल]

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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        🌳 सब में एक 🌳

पंच तत्त्व में  एक है, अवनि   जीवनाधार।

मानव का  सत  धर्म है,बने न भू  का  भार।।


जन्म दिया है जननि ने, अवनि उठाया गोद

स्वर्ग अवनि जननी सदा,रह नर क्रोड़ समोद


अंबर-सा उर कीजिए,व्यापक विशद विशाल

नेह सभी को बाँटिये, बजा-बजा  सुर ताल।।


अंबर में सब व्याप्त हैं,चार तत्त्व   जो  शेष।

क्षिति,जल,पावक,वायु का जहाँ हुआ उन्मेष


अगहन में हेमंत का,सुखद सुहाना  शीत।

शरद क्वार के सँग गई,विदा कार्तिक रीत।।


अगहन की नव गहनता, समझ रहे जो मीत

सावधान  रहते  सदा, नहीं व्यापता   शीत।।


पूस मास  में काँपते,थर-थर  मानव, जीव।

प्रोषितपतिका सेज पर,याद करे निज पीव।।


पंख फुलाए  शाख  पर,बैठे छिपकर   कीर।

पूस लगा नर -नारि अब, रखें न मन में धीर।


देख फ़सल निज खेत में,हर्षित धीर किसान

हरियाली उर में जगी,स्वर्णिम 'शुभम'विहान


फ़सल कृषक की पक गई,जागा उर विश्वास

सपने घरनी  देखती,बँधी पिया  से   आस।।


  🌳 एक में सब  🌳

पूस औऱ अगहन सभी,

                     रबी फ़सल के   मास।

अवनि वायु अंबर सलिल,

           शीतल,      शुचि     से आस।।

  

शुचि=अग्नि।


🪴 शुभमस्तु !


१५.१२.२०२१◆६.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

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