गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

संभावना के पार 🌲 [ अतुकांतिका ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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संभावना के पार 

कुछ गोचर नहीं,

नहीं वश मनुज के

सच है यही,

परिस्थितियों का दास है

हर आदमी,

था सदा है 

और है वह आज भी।


कर रहा कल का सृजन

भवितव्य का,

फिर भी नहीं है

कुछ पता गंतव्य का,

मात्र  चलना ज्ञात है

पर क्या पता

कब तक कहाँ तक

गर्भ में सब कुछ

छिपा है समय के।


जैसे अँधेरे में

टटोले जा रहे,

सब अदृश्य है,

और आगामी पल भी

पूर्णतः अदृष्ट है!

बंद रखे हुए 

ग्रंथ का वह पृष्ठ है।


कर्म करना भी

नहीं है रोकना,

 भावी पीढ़ियों के लिए

आदर्श पथ भी छोड़ना,

 नहीं तुझको कभी भी

फल याचना का 

 तनिक अधिकार है,

कर न कर

पर करना ही होगा

तुझे स्वीकार है।


उस नियंता की 

बनाई अस्थि मज्जा 

रक्त माँस की,

पुतली मात्र है ,

कहते जिसे सब मृत्तिका

उससे बना 

तव गात्र है,

मत 'शुभम' इतरा

अपने रूप पर,

झाँक ले जब - तब

कर्म के कूप पर,

तू  सचल मुद्रा 

डाला गया कुछ 'मूल्य' है,

मूल्य है वह आत्मा

वरन तेरी देह तो

निर्मूल्य है,

मृत्तिका का सूक्ष्म कण

बस धूल है।


🪴 शुभमस्तु !


०९.१२.२०२१◆४.१५ 

पतनम मार्तण्डस्य।


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