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✍️ शब्दकार ©
🚣🏻♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
मतमंगे आने लगे, दर-दर निकट चुनाव।
ले मत की पतवार को,खेनी अपनी नाव।।
खेनी अपनी नाव, विधाता उनकी जनता।
टोपी रखते पाँव,काम यदि उनसे बनता।।
'शुभम' गहन मतधार,बोलते हर - हर गंगे।
छोड़ निजी घर- द्वार, चले दर-दर मतमंगे।।
-2-
साधे जो मत-नाव को,'तू' से बनता 'आप'।
सिर पर मेरे बैठ जा, बनकर गदहा बाप।।
बनकर गदहा बाप,मिले जब मुझको कुरसी।
पाएगा सुख -धाम,चढ़ेगी तन में तुरसी।।
'शुभम' आज ले बोल,सिया वर राधे - राधे।
करूँ खून सौ माफ, नाव मत की जो साधे।।
-3-
वादे की बरसात का , मौसम मधुर चुनाव।
पूरा करना अलग है,चढ़ा आज मुख- ताव।।
चढ़ा आज मुख- ताव, हाँकना लंबी-चौड़ी।
यही समय की माँग, खिलाते गरम मगौड़ी।।
'शुभम' न कभी अभाव,नेक हैं सभी इरादे।
मदिरा पी कर ओक,करूँगा पूरे वादे।।
-4-
बीते पाँचों साल भी, नेता गए न गाँव।
देखे निकट चुनाव तो,टिके न घर में पाँव।
टिके न घर में पाँव, मंच पर चढ़ कर बोले।
शहद भरा आचार, बोल में मधुरस घोले।।
'शुभम' बँधाते आस, नहीं लौटेंगे रीते।
आएँ हम हर साल,भूल जा जो दिन बीते।।
-5-
नेता अभिनेता बना,बदल- बदल कर रूप।
वाणी में मिश्री घुली,भरे शहद से कूप।।
भरे शहद से कूप, चुनावी नाव हमारी।
पार करो रे मीत, न होवे अपनी ख्वारी।।
'शुभम'चरण का दास,नहीं कुछ तुमसे लेता।
घुटने तक ही हाथ, परस मत माँगे नेता।।
🪴 शुभमस्तु !
२०.१२.२०२१◆८.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।
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