सोमवार, 20 दिसंबर 2021

मतमंगे आने लगे 🚣🏻‍♀️ [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🚣🏻‍♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

मतमंगे  आने   लगे, दर-दर निकट   चुनाव।

ले मत  की पतवार को,खेनी अपनी   नाव।।

खेनी  अपनी  नाव, विधाता उनकी  जनता।

टोपी  रखते पाँव,काम  यदि उनसे   बनता।।

'शुभम' गहन मतधार,बोलते हर - हर  गंगे।

छोड़ निजी घर- द्वार, चले दर-दर मतमंगे।।

                        -2-

साधे जो  मत-नाव को,'तू' से बनता  'आप'।

सिर पर  मेरे बैठ  जा, बनकर गदहा  बाप।।

बनकर गदहा बाप,मिले जब मुझको कुरसी।

पाएगा   सुख -धाम,चढ़ेगी तन  में   तुरसी।।

'शुभम'  आज ले बोल,सिया वर राधे - राधे।

करूँ खून सौ माफ, नाव मत की जो साधे।।

                        -3-

वादे की बरसात का , मौसम मधुर चुनाव।

पूरा करना अलग है,चढ़ा आज मुख- ताव।।

चढ़ा  आज मुख- ताव, हाँकना लंबी-चौड़ी।

यही समय की माँग, खिलाते गरम मगौड़ी।।

'शुभम' न कभी अभाव,नेक हैं सभी इरादे।

मदिरा  पी कर  ओक,करूँगा पूरे    वादे।।

                        -4-

बीते  पाँचों   साल भी, नेता  गए  न  गाँव।

देखे निकट  चुनाव तो,टिके न घर में पाँव।

टिके न घर में पाँव, मंच पर चढ़ कर बोले।

शहद भरा आचार, बोल में मधुरस  घोले।।

'शुभम'   बँधाते   आस, नहीं लौटेंगे    रीते।

आएँ हम हर साल,भूल जा जो दिन बीते।।

                        -5-

नेता अभिनेता बना,बदल- बदल कर रूप।

वाणी  में मिश्री घुली,भरे शहद  से   कूप।।

भरे  शहद   से कूप, चुनावी नाव    हमारी।

पार  करो  रे  मीत,  न होवे अपनी  ख्वारी।।

'शुभम'चरण का दास,नहीं कुछ तुमसे लेता।

घुटने तक  ही हाथ, परस मत माँगे   नेता।।


🪴 शुभमस्तु !


२०.१२.२०२१◆८.४५ आरोहणं मार्तण्डस्य।

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