सोमवार, 27 दिसंबर 2021

शब्दामृत - सार 🦚 [ दोहा ]


[ सागर, दरिया,वादे ,वाद, विवाद ]

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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       🐟 सब में एक 🐟

शब्दों का सागर अतल,उर में भरा अपार।

कविता की बहती सदा,मोहक मधुरिम धार


सागर से बादल उठे, नभ में सघन अनेक।

निर्मल जल बरसा रहे,करते जग-अभिषेक


दरिया दिल दरिया सदा,देता निधि को नीर।

बहता अविरत धार से,फिर भी नहीं अधीर।।


दरिया सींचे अवनि को,तृप्त करे नित प्यास

पौधे,फसलें, कीर,पशु,लगा रहे शुभ आस।।


प्रभु  से  करता जीव ये,वादे  लाख   हजार।

पर पूरे  करता नहीं,  आता जितनी   बार।।


वादे  कर आई  नहीं, करने को  अभिसार।

प्रेमी  को धोखा दिया,अनुचित  ऐसा प्यार।।


वाद - वाद सब ही रटें,  नहीं निभाते वाद।

राजनीति  के रंग  में, ढोल कर  रहे   नाद।।


वाद उचित उसका नहीं, मिथ्यावादी  कूर।

नेता  अपने  वाद से ,  रहता कोसों    दूर।।


पड़ता नहीं विवाद में,उर में मैल  न  धूल।

सत जिसके अंतर बसे,करे न औचक भूल।।


मत  विवाद को तूल दे,पड़े न मिथ्याचार।

'शुभं' वही मानव सुखी, जीवन का उपहार।।


      🐟 एक में सब 🐟

करता  वाद - विवाद क्यों,

                      दरिया     वादे  पूर।

हर  पल  जल  देता  रहा,

               सागर       ज्यों मदचूर।।


🪴 शुभमस्तु !


२४.१२.२०२१◆७.००आरोहणं मार्तण्डस्य।

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