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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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माँ तुलसी की पूजा करती।
सुबह - शाम घी - दीपक रखती।।
पहले जल से स्वयं नहाती।
फिर वह तुलसी को नहलाती।।
बिछुआ , चूड़ी भी पहनाती।
लाल चुनरिया उन्हें उढ़ाती।।
रोली से तुलसी सज जाती।
फिर माँ बत्ती धूप जलाती।।
फूलों की माला भी डाले।
छूकर सिर से उसे लगा ले।।
परिक्रमा गिन- गिन कर होती।
दिखलाती दीपक की ज्योती।।
पूजा का प्रसाद हम पाते ।
'शुभम' आरती - मिल- जुल गाते।।
🪴 शुभमस्तु !
२१.१२.२०२१◆११.४५आरोहणं मार्तण्डस्य।
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