436/2022
✍️ शब्दकार©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
आई है दिवारी आज,देखि-देखि भव्य साज,
दीप जले राम - काज, भारत महान है।
नदी घर - द्वार सजे, अंधकार गेह तजे,
भक्त राम -नाम भजे ,ऐक्य का वितान है।।
छतें देहरी अटारी,नव्य ज्योति की पिटारी,
दीप - पुंज ने निखारी, स्वर्ग के समान है।
आओ दीप ही जलाएँ, दूर करके बलाएँ,
बाग देहरी सजाएँ, स्वदेश की शान है।।
-2-
मावस की आज रात,अश्व नहीं भानु सात,
नेत्र से न दृश्य गात, घन अँधियार है।
दूर्जा संग मातु रमा, विभु देव प्रियतमा,
पूजन का साज जमा,दीपों की कतार है।।
शारदा की बीन बजी,रम्य दिशि दस सजी,
अंधकार मही तजी,ज्योति का प्रहार है।
पुष्प धूप की सुवास, धन-धान्य का प्रकाश,
आया 'शुभम्' को रास, विज्ञता - बहार है।।
-3-
देखि धरा - चमकार, तारे करते गुहार,
देखि ज्योति की फुहार,आई है दीपावली।
नदी, नद, घर, द्वार, छत, अटारी, पनार,
जली दीपनु कतार, रात गई है ढली।
जलें शून्य फुलझड़ी, अनार बम भी बड़ी,
नारि अटारीनु खड़ी,सजी- धजी है गली।
खील, फूल,लड़ीमाल,बदली-बदली है चाल,
नृत्य करें खूब बाल,खिल उठी है कली।।
-4-
खेत-खेत में किसान, झूमि रहे देखि धान,
खील खिलीं सेत फूल,श्री गणेश आइए।
गेह में समृद्धि होइ, नेह के सु-बीज बोइ,
विनष्ट होंइ कु-शूल, नियति सजाइए।।
गाँव-गाँव धाम-धाम, जपें जन राम-राम,
मन में न शेष धूल, ज्ञान सों भिगाइए।
निरोगता सदा बढ़े, प्रगति पंथ पै चढ़े,
मिले देह को दुकूल, वीरता दृढ़ाइए।।
-5-
चाँदनी न शून्य बीच, घनान्ध तम नगीच,
दिवस - उजास भरा, दिवाली - बाजार में।
यथार्थ है कि भ्रान्तिका,शंख ध्वनित क्रांतिका
तम गया मान हार, राम के प्रचार में।।
श्याम कहत श्यामा सों, रेवती बलरामा सों,
जगमगा रही धरा, दीप -पर्व प्यार में।
धन्य शुचि ब्रजधाम,राम नाम अंत काम,
निधिवन हरा - हरा, शुभं उपहार में।।
🪴शुभमस्तु !
22.10.2022◆ 3.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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