मंगलवार, 25 अक्तूबर 2022

गौमाता बनाम भैंस माता🐃 [ अतुकान्तिका ]

 441/2022

      

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

दूध जो पिलाए

उससे है अपना,

मेरा, आपका, सबका

कोई न कोई नाता,

बदली नहीं है

अभी पुरानी परिभाषा,

कहिए ,चाहे न कहिए,

पर है तो

वह भी माता।


जन्मदात्री जननी

दूध पिलाने वाली धाय,

गौ तो है ही प्रख्यात माता,

पिया है आजीवन 

जिस भैंस का

 गाढ़ा दूध,

वह भी तो है

सत्तर प्रतिशत माता,

शेष तीस में 

अनेक माता 

गौमाता ,

बकरी माता,

भेड़ माता ,

ऊँटनी माता,

पर इन सबको

माता कहने में

कृतघ्न क्यों शरमाता!


अपने बच्चों को

अतिथियों को,

चुसनी में

अथवा चाय में

भैंस का ही 

दूध सुहाता,

पर गीत बस

गाय के ही गाता,

क्योंकि

लकीर का फ़क़ीर

स्वार्थी इंसान

पिटी- पिटाई

लकीर पर ही

चल पाता,

बढ़कर इससे 

कुछ औऱ आगे,

बंद हो जाता

उसका खाता।


किसी भी 

दूध को मत लजा,

मार रहा 

 घृत माखन में

दही छाछ में,

रबड़ी में

कलाकंद बर्फी में

उसी भैंस के 

दूध का मजा!

परन्तु कहने के लिए 

है बस एक गौमाता!


ऐसे भी हैं

कुछ कृतघ्न नर,

जो जननी के

दूध का भी

ऋण अदा नहीं करते,

जीते जी

उन्हें करते अपमानित

पाप कमाने से भी

कहाँ डरते!

इंसान नहीं है वे 'शुभम्',

मादा श्वान, शूकरी

गर्दभी से नेह करते,

वे क्या जानें 

माता के दूध का

ऋण कोई चुका नहीं पाता,

 वे क्योंकर कहें

निज जननी को माता!


🪴 शुभमस्त!


25.10.2022◆11.30 आरोहणम्  मार्तण्डस्य।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...