सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

सह सुगंध हर फूल न होता 🌹 [सजल ]

 456/2022

 

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●समांत : ऊल ।

●पदांत :   न होता।

●मात्राभार : 16.

मात्रा पतन:  शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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समय सदा अनुकूल न होता।

सह सुगंध  हर  फूल न होता।। 


मानव को  भी चुभता  मानव,

जो चुभता  हर शूल  न होता।


रज कण देता  है  नव जीवन,

हर रजवत कण धूल न होता।


गलती  कभी  सभी  से  होती,

कोई   मूढ़   समूल   न  होता।


मत आँको वसनों से जन को,

मति से ऊल-जुलूल न होता।


कैसे   कवि   बन  पाता कोई,

उर में  उसके   हूल  न  होता।


'शुभम्' सोचकर कर्म करें तो,

करनी का फल भूल न होता।


🪴शुभमस्तु !


31.10.2022◆5.45आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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