शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

पीड़ा-हर प्रभु राम हैं 🛕 [ कुंडलिया ]

 434/2022


■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️शब्दकार ©

🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

                         -1-

पीड़ा हर प्रभु राम हैं,पीड़ित यदि   परिवार।

परपीड़क  को दंड  दें,पल में कर   उद्धार।।

पल में  कर  उद्धार, प्रेम की पावस   प्यारी।

बरसे  बन उपकार, खिले पुष्पों की क्यारी।।

'शुभम्' जपें शुचि नाम,राम का लेकर बीड़ा।

हरि करते दुख दूर, हरे तन मन की  पीड़ा।।


                         -2-

पीड़ा  में प्रभु राम का,याद करें  सब  नाम।

सुख  में हम भूले रहें,कहाँ राम  का  धाम।।

कहाँ राम का धाम,काम,मद ,मत्सर भाते।

करते   नहीं   प्रणाम,  अहं  में वे मदमाते।।

'शुभम्' ज्ञान का लोप,रेंगता मन  में  कीड़ा।

काट रहा दिन- रात,जगाता जग की पीड़ा।।


                         -3-

पीड़ा  बहु  आयाम  में, आती नर  के पास।

शांतिहरण मन की करे,मुख भी म्लान उदास

मुख भी म्लान उदास,भाँप लेता   हर  कोई।

लगा  भाल   सिंदूर, भाग्य - रेखा  है  सोई।।

'शुभं'न आशा छोड़,उठा कटि कसकर बीड़ा

सुख न रहा यदि साथ,सदा ही रहे न पीड़ा।।


                         -4-

पीड़ा   देखें   और  की,दूर  करें  चितलाय।

यही   पुण्य  सद्धर्म   है ,होना सदा  सहाय।।

होना  सदा  सहाय, निवारक ही  हरि   होते।

पर  दुख   में   जो  डूब, लगाते  गहरे गोते।।

'शुभम्' न पश्चाताप, न होगी मन  में  व्रीड़ा।

जो  हरता पर पीर,मिटे उसकी  हर  पीड़ा।।


                         -5-

पीड़ा का कारक नहीं, बने न जो  नर  धीर।

महा  आत्मा  है वही,वही साधु  शुचि वीर।।

वही साधु शुचि वीर, नहीं तन वसन रँगाता।

जन-जन में नर देव,सदा ही नाम कमाता।।

'शुभम्'न उनको काट,सकेगा कपटी  कीड़ा।

करता नित उपकार,औऱ हरता पर पीड़ा।।


🪴 शुभमस्तु !


21.10.2022◆7.45  आरोहणम् मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...