425/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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अच्छे ये दिन - रात बनाए।
संध्या कनक प्रभात बनाए।।
सूरज कभी उजाला देता,
काले तम के घात बनाए।
टिक-टिक कर सुइयाँ हैं बढ़तीं,
आरोहण सँग पात बनाए।
खिलतीं कलियाँ सुबह फूल की,
रजनी में मुरझात बनाए।
शीत चंद्रिका है रजनी की,
तारे लिए बरात बनाए।
गर्मी, पावस, वर्षा, जाड़ा,
शुभ वसंत मधु वात बनाए।
'शुभम्' ईश तव रचना ऐसी,
जननी के सँग तात बनाए।
🪴 शुभमस्तु !
17.10.2022◆1.45 प.मा.
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