409/2022
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✍️ शब्दकार ©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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तेरी मूर्ति गढ़ी ईश्वर ने,
तू भी मूर्ति- पुजारी।
तू माटी का लौंदा अनगढ़,
तुझको बना सजाया।
जीवन फूँक दिया माटी में,
अनहद नाद बजाया।।
धीरे - धीरे मूर्ति तुम्हारी,
हुई मनों में भारी।
की कुम्हार ने प्रतिमा - पूजा,
तू भी वैसा करता।
आस्था और बिना श्रद्धा ही,
दम सेवक का भरता!!
ऐसी पूजा वृथा मूढ़ नर,
भारत माँ की नारी।
श्रद्धा से ही फल मिलता है,
रामकृष्ण को देखा!
शिष्य विवेकानंद लिख रहे,
अपने गुरु का लेखा।।
'शुभम्' भक्ति वैसी तू कर ले,
हरें विपद प्रभु सारी।
🪴शुभमस्तु !
12.10.2022◆3.15 प.मा.
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