407/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
खोज रहा तू बाहर बंदे!
सब कुछ भीतर तेरे।
पढ़ना क्या पोथी - पुराण को,
अंतर सुप्त उजाला।
ज्योति जला ले ज्ञान -दीप की,
मिट जाए तम काला।।
खुलें स्रोत पर स्रोत हजारों,
मानस को जो घेरे।
शिक्षा से चरित्र बालक का,
अति दृढ़ सदा बनाना।
बालक और बालिकाओं को,
सम शिक्षा दिलवाना।।
कर्म, वचन, मन की पावनता,
देती चरित उजेरे।
शिक्षा से तन का विकास हो,
मन नैतिकता बढ़ती।
पौध नई सत- पथ चरित्र के,
सोपानों पर चढ़ती।।
सीख धर्म की दें नारी को,
होंगे शुभम् सवेरे।
🪴शुभमस्तु !
12.10.2022◆11.45 आ.मा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें