457/2022
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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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समय सदा अनुकूल न होता।
सह सुगंध हर फूल न होता।।
मानव को भी चुभता मानव,
जो चुभता हर शूल न होता।
रज कण देता है नव जीवन,
हर रजवत कण धूल न होता।
गलती कभी सभी से होती,
कोई मूढ़ समूल न होता।
मत आँको वसनों से जन को,
मति से ऊल-जुलूल न होता।
कैसे कवि बन पाता कोई,
उर में उसके हूल न होता।
'शुभम्' सोचकर कर्म करें तो,
करनी का फल भूल न होता।
🪴शुभमस्तु !
31.10.2022◆5.45आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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