433/2022
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छंद-विधान:
1.24 वर्ण का वर्णिक छंद।
2.आठ सगण सलगा =(II$ ×8).
3.12,12 वर्ण पर यति।प्रत्येक चरण में 24 वर्ण।
4.अंत में समतुकांत अन्त्यानुप्रास।
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✍️ शब्दकार ©
🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
चलते प्रभु राम सुबंधु सिया,
सँग वीर महा बजरंग बली।
दसकंधर - बंधु विभीषण हू,
जिनके सँग वानर सेन चली।।
वन -मारग में अति सोभि रहे,
छवि मोहि रही द्रुम कुंज कली।
सुनि औधपुरी सरसाइ उठी,
हरषीं सब मात सचेत भली।।
-2-
मुद मंगल गान भए पुर में,
नर- नारि बड़े हरषाइ रहे।
नभ बीच खड़े सुर लोगनु में,
सद फूल घने बरसाइ लहे।।
हनि रावण, राम चले घर कूं,
निज हाथनु माल सिहाइ गहे।।
हर एक घड़ी लगि बोझ रही,
सब आपस में बतराइ कहे।।
-3-
मन में सुख सौरभ आइ मिलौ,
अब आजु दिवारि कहें सिगरे।
घर भीतर बाहिर दीप जरें,
वन बाग तड़ागनु के नियरे।।
अपने प्रिय राम सुबंधु सखा,
सँग हैं बजरंग बली सिय रे।
अब आइ रहे वन - मारग में,
सब देंइ सुझाव पिया तिय रे।।
-4-
सरजू तट पै अति भीर भई,
पुर के नर नारि जुरे हरसें।
कर माल लिए उर मोदमई,
बिन देखत नैन गए तरसें।।
अगवानि करें बढ़ि मारग में,
सिय आइं त पाँयनु कूं परसें।
गलबाँह लगाय मिलें प्रभु से,
छुइ देह बढ़ें अपने कर सें।।
-5-
जप रे मन राम हि राम सदा,
रमता जड़ चेतन बीच सदा।
मत सोवत जागत भूल कहूँ,
भरमा मत मूरख जीव कदा।।
नित दीप जला उर मंदिर में,
उजियार भरे उर में प्रमदा।
लख यौनि न जीव यहाँ भटकै,
शुभ मोख मिलै नर कूं शुभदा।।
🪴 शुभमस्तु !
20.10.2022◆5.45
पतनम मार्तण्डस्य।
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