403/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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छलनी में अनुकूलता,की छवि का छल रूप।
सधवा की प्रियता बढ़ी, करवा व्रत की धूप।।
छलनी ने जो छल किया,हुआ उसी से मोह।
पैदा कर भ्रम चाँद का,कहती नारी ओह!!
भ्राताओं ने भगिनि की,देख क्षुधा अति प्यास
छल से दीपक को दिखा,किया गया उपहास
छलनी जिसका नाम है,छल ही उसका काम
छलती है हर बार ही , होना ही बदनाम।।
चौथ मनाने के लिए,करवा का उपवास।
छलनी ने छल कर किया,नारी सँग उपहास
बिन छलनी दर्शन नहीं, मुखड़ा निज पतिदेव
भ्रम का बना स्वभाव ही,करवा दिन की टेव
छलनी कहे परात से,जिसमें छेद हजार।
छान-छान छलनी करे,रखती नहीं उधार।।
छल की झीनी ओट का,सम्मोहन आधार।
नारी को नित मोहता,ज्यों घूँघट का प्यार।।
क्या सीधे निज नेत्र से,लगता दर्शन भार?
घूँघट छलनी में लखे,पति मुख रूपाकार।।
ज्यों घूँघट पट ओट में,सुंदर लगे कुरूप।
त्यों छलनी में देव पति,लगता मन्मथ भूप।।
आवृत कलिका फूल की,हरे दलों के मध्य।
आकर्षण देती बढ़ा, गाकर पढ़ती पद्य।।
🪴 शुभमस्तु !
07●10●2022◆5.30 प.मा.
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