432/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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दृश्यिका :1
दिया अकेला
जलता रहा
रात भर,
जूझते हुए
हवाओं से,
बस दिया ही दिया
प्रकाश।
दृश्यिका :2
चुगलियाती हुई
चार चतुर जनानियाँ
गले में देख उसके
स्वर्ण हार,
जलती रहीं,
दिया ही दिया
मानसिक दूषण।
दृश्यिका: 3
नहीं देखी
स्वनिष्ठा
कर्मनिष्ठा,
पड़ौसी देखकर
अपना पड़ौसी
जल भुन कर
कोयला हुआ,
दिया ही दिया,
समाज को
भयानक विष।
दृश्यिका :4
साथ- साथ खेले
लड़े -भिड़े
बालक छोटे - छोटे,
क्षण भर में
फिर खेले एक साथ,
दिया ही दिया
प्रेम औऱ सौहार्द्र।
दृश्यिका : 5
प्रगतिशील
विकासशील
कहता मानव,
टंगड़ी मारकर
गिराने में कुशल,
दिया ही दिया है
असमानता,
तुच्छ-बड़प्पन,
अहंकार।
वाह रे मानव!
🪴 शुभमस्तु !
20.10.2022◆ 8.00 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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