गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

पाँच दृश्यिकाएँ 🪔 [ अतुकांत ]

 432/2022


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✍️ शब्दकार ©

🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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               दृश्यिका :1

दिया अकेला

जलता रहा

रात भर,

जूझते हुए

हवाओं से,

बस दिया ही दिया

प्रकाश।


                दृश्यिका :2

चुगलियाती हुई

चार चतुर जनानियाँ

गले में देख उसके

स्वर्ण हार,

जलती रहीं,

दिया ही दिया

मानसिक दूषण।


             दृश्यिका: 3

नहीं देखी

स्वनिष्ठा 

कर्मनिष्ठा,

पड़ौसी  देखकर

अपना पड़ौसी

जल भुन कर

कोयला हुआ,

दिया ही दिया,

समाज को 

भयानक विष।


           दृश्यिका :4

साथ- साथ खेले

लड़े -भिड़े 

बालक छोटे - छोटे,

क्षण भर में

फिर खेले एक साथ,

दिया ही दिया

प्रेम औऱ सौहार्द्र।


           दृश्यिका : 5

प्रगतिशील 

विकासशील 

कहता मानव,

टंगड़ी मारकर

गिराने में कुशल,

दिया ही दिया है

असमानता,

 तुच्छ-बड़प्पन,

अहंकार।

वाह रे मानव!


🪴 शुभमस्तु !


20.10.2022◆ 8.00 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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