437/2022
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✍️शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पाँच दिवस का पर्व है, दीपावली महान।
घर -घर में दीपक जलें, भारत भूमि प्रमान।।
धन्वंतरि भगवान की,बरसे कृपा अपार,
नर-नारी नीरोग हों, सरसे शुचि धन-धान।
सत्कर्मों में रत रहें, परि पुरजन शुभ देश,
नहीं मिले यम यातना, न हो नरक प्रस्थान।
नरकासुर को मारकर, किया कृष्ण उद्धार,
सोलह सहस कुमारियों,का करते प्रभु मान।
सागर का मंथन हुआ, लक्ष्मी आविर्भूत,
दीप जले तम नाश कर,गाएँ मंगल - गान।
चौदह वर्षों बाद ही,लखन सिया श्रीराम,
लौटे थे वनवास से,जग के कृपा निधान।
गोवर्धन गिरि को उठा,नासी ब्रज की पीर,
द्वापर में श्रीकृष्ण ने,कहता जग भगवान।
रमा रूप गौ मात है, गंगावत हैं पूज्य,
गोधन को पूजें सभी,तिथि पड़वा की जान।
यम भगिनी यमुना नदी, टीका देती भाल,
अपने भय से मुक्त कर,सता न जन के प्रान।
'शुभं'सुखद दीपावली,कर सबका कल्याण,
यथाकर्म फल प्राप्त कर,पाएँ जन जन त्रान।
🪴शुभमस्तु !
23.10.2022◆8.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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