443/2022
[रोशनी,उजियार,जगमग,तम, दीप]
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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🕯️ सब में एक 🕯️
शुभागमन जब से हुआ,भरी रोशनी गेह।
नवल वधू दिप-दिप करे,दीप शिखा-सी देह।
दिग दिगंत दीपित बड़ा,जगमग है संसार।
दिनकर-सी शुभ रोशनी,लुटा रही है प्यार।।
रमा-आगमन की घड़ी,करती गृह- उजियार
दीवाली की रात में, भर देतीं आगार।।
जहाँ नहीं उजियार हो,तम करताअधिकार।
मति न काम करती वहाँ,लगता जीवन भार।
जगमग आलय हो गया,पड़े चरण शुभ द्वार
दूर हुआ तम गेह का,बदल गया संसार।
दीपदान सरि में हुआ,जगमग वीचि हजार।
सुमन सुगंधित गा रहे,गीत भरे शुचि प्यार।।
विदा हुआ तम दृष्टि का,जागी है नवज्योति।
सब अपने लगने लगे,मिटी भाव की छोति।।
अपनी सीमित शक्ति से,मिटा रहा तम आज
जुगनू घन अँधियार में,करता है नव काज।।
तमसावृत रजनी घनी,दिप- दिप करते दीप।
तारे जगमग कर रहे,ज्यों मोती सँग सीप।।
दीप जलें उस गेह में, जहाँ तमस का वास।
कहना शुभ दीपावली,करना यही प्रयास।।
🕯️ एक में सब 🕯️
जगमग करती रोशनी,
दीप करें उजियार।
टिका न तम पल एक भी,
भरता हर्ष अपार।।
🪴 शुभमस्तु !
26.10.2022◆2.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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