415/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
मनमानी की ठानी है।
घर - घर खींचातानी है।।
संतति चले कुराहों पर,
सूखा दृग का पानी है।
बोया कैसा बीज बुरा,
कँदुआ कारस्तानी है।
तब तो एक विभीषण था,
अब घर - घर में घानी है।
उर में आँसू की बाढ़ें,
जनक - लाज मुरझानी है।
लखन भरत अब सपने हैं,
खल की खाज खुजानी है।
'शुभम्' पूज्य अब के रावण,
नहीं राम की बानी है।
🪴 शुभमस्तु !
16.12.2022◆10.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें