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✍️शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मात्र देह नर की नहीं,देती मानव रूप।
ज्ञान बिना नर ढोर है,गिरता तम के कूप।।
नर तन के अनुरूप ही,कर्म उचित करणीय।
कर्म वही करना 'शुभम्',संग राम ज्यों सीय।
नर तन में हैं जौंक भी,मच्छर, डेंगू, गिद्ध।
कपड़े रँगने से नहीं, बनता कोई सिद्ध।।
नर तन का अपमान कर,बना रहा तू कीट।
योनि मिलेगी कीट की,रौरव नरक घसीट।।
मनुज योनि तेरी नहीं, निर्मल एक चरित्र।
सेवा से उज्ज्वल बना, महकेगा तब इत्र।।
नर नारी कुछ नाम को,मिली नियति से देह।
जीवन जिनका ढोर-सा,रहे घूर के खेह।।
परजीवी बन चूसता,जनक जननि का खून।
संतति सूकर श्वान-सी, जीवित टेलीफून।।
अगली योनि सुधारना,इसी देह का काम।
दाग लगा नर देह में,मिले नहीं विश्राम।।
मात,पिता, गुरु का करे, जो संतति अपमान
सात जन्म पशु कीट बन, सोता कीचड़ सान
विगत योनि में हो गया,बुरा अशुभ यदि कर्म
उगे कंडुआ गेह में, करता पाप अधर्म।।
जगत सराहे कर्म को,नहीं रूप या देह।
'शुभम्' कर्म से जीव का,बनता स्वर्ग सु-गेह।
🪴शुभमस्तु!
17.10.2022◆9.00प.मा.
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