439/2022
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✍️ शब्दकार ©
💃🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कार्तिक -निशा निराली देखो।
आई है दीवाली देखो।।
तारे हैं अनगिन अंबर में,
भरी खील की थाली देखो।
नर-नारी मन मुदित सभी हैं,
नाचें बालक ताली देखो।
कोई पड़ा हुआ नाले में,
पीकर सुरा बवाली देखो।
मौसम किंचित शीतल नम है,
झुकी ओस से डाली देखो।
गर्वोन्नत कानों पर चढ़ती ,
ब्रजांगना की बाली देखो।
जीजाजी से लजा रही है,
भार्या - भगिनी साली देखो।
मैंने तो कुछ कहा न उनसे,
फिर भी देती गाली देखो।
'शुभम्' न चाहे झगड़ा करना,
सुनी बात , पर टाली देखो।
🪴शुभमस्तु !
23.10 2022◆11.00 पतनम मार्तण्डस्य।
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