416/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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झूठ सत्य को छलता है।
पछताता कर मलता है।।
थूक रहा जो अंबर पर,
मिलती सदा विफलता है।
सुमन सुगंधित वे होते,
जिन पर भ्रमर मचलता है।
संत कुसंगति से बिगड़े,
अघ - ओघों से गलता है।
तन रँगना अनिवार्य नहीं,
कर्म सदा ही फलता है।
सुत जो मान नहीं करता,
खद्योतों - सा ढलता है।
'शुभम्' स्वेद -श्रम का शोभन,
देता सदा सफलता है।
🪴शुभमस्तु !
16.10.2022◆11.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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