गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

सबके अलग उजाले 🕯️ [ गीत ]

 429/2022

   

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✍️ शब्दकार ©

🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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अलग-अलग  दीवाली सबकी,

सबके अलग उजाले।


काले धन से भरी कोठियाँ,

मनों टनों में सोना।

चाभ रहे हैं शुष्क रोटियाँ ,

उन्हें सुखों का रोना।।

उपहारों  में  मेवा।

सेवक करते सेवा।।

तरस रहे रहने  को बँगले,

सब्जी बिना मसाले।


एक  बहाता  उधर पसीना,

दो रोटी के लाले।

सुख की नींद पत्थरों में भी,

हाथ पैर में छाले।।

चिंता नेंक न कल की।

टी वी ,कारों,नल की।।

पैर  सौर  की  सीमा  में हैं,

सोता लगा न ताले।


दिये बनाने  वाले   की   भी,

है अपनी दीवाली।

खील-खिलौने उसे  चाहिए,

तिया अधर में लाली।।

छोटे-   छोटे  सपने। 

पूर्ण किए कब रब ने??

ऊँची सजी  दुकान देखकर,

 हो जाते सब काले।


जहाँ  अमीरी  औऱ गरीबी,

बीच बनी दीवारें।

काली  श्वेत लक्ष्मी  के घर,

कैसे देश सुधारें।।

उर के चूल्हे जलते।

लोग ऐंठ में चरते।।

'शुभम्' दिखावे की बातें सब,

उर में उगते भाले।


🪴शुभमस्तु !


19.10.2022◆ 5.00पतनम मार्तण्डस्य।

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