440/2022
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छन्द- विधान:
1.यह एक वर्णिक छंद है।
2. 07 भगण ($II×7 + गुरु)
3.10 ,12 वर्ण पर यति होता है।
4.चार समतुकांत चरण होते हैं।
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✍️ शब्दकार ©
🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
गोधन - पूजन आजु चलौ,
सखि गोधन की महिमा अति है।
देवि रमावत पूज्य सदा,
कवि देवनदी सम मानत है।।
दूध पिबाइ बड़ौ करती,
शिशु कौन नहीं सचु जानत है।
कान्ह बचाइ दयौ ब्रज भू,
तब इन्द्रनु कोप जु ठानत है।।
-2-
गाय कहावति मात बड़ी,
परि भैंसिनु माँ पदवी न मिली।
दोनहु दूध पिबाइ रहीं,
कजरारि न पावत मान भली।।
भेद न नीक बड़ौ इतनों,
अब भैंसि गई पनिया कु चली।
रंगनु भेद करौ जनि रे,
कहि भैंसहि स्याह बला अबली।।
-3-
पाँव बड़े मजबूत खड़े,
कछु भैंसिनु गायनु भेद नहीं।
सींगहु पूँछहु धारि रही,
सद दूध सफेदहु देय रहीं।।
पीवत दूध सबै उनकौ,
नहिं मानि रहे अहसान कहीं।
भैंसि कहें महिषी सिगरे,
यदि गाय तुम्हार सुमात यहीं।।
-4-
धूम मचाइ - मचाइ करें,
बहु शोर पटाखनु कौ सिगरे।
फैलि रहौ चहुँ ओर बड़ौ,
अति दूषण धूम दुखें चख रे।।
कौन जु रीति चली जग में,
ध्वनि हानि करै जन कौ तन रे।
रोकत नाहिं बढ़ी जड़ता,
यह देखि गयौ मुरझौ मन रे।।
-5-
पीवत - पीवत जाय परे,
कछु मोरिनु नालिनु पी मदिरा।
भूलि गए कछु गैल भले,
अरु पाँव नहीं धरतीहु थिरा।।
चाटि रहे मुख श्वान खड़े,
इक टाँग उठाइ स्वमूत्र गिरा।
पीटि रहीं घरनी जेहि की,
गहि हाथ बुहारु न पी मदिरा।।
🪴शुभमस्तु !
25.10.2022◆9.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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