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✍️ शब्दकार ©
👨✈️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
बचपन कच्चा दूध है,पिया जननि के अंक।
नव किशोर वय पार की,खेले खूब निशंक।।
खेले खूब निशंक, दूध ज्यों ही औटाया।
गर्मी बढ़ी सु-देह, चढ़ी यौवन की माया।
'शुभम्' बने दधि छाछ,प्रौढ़ता छाई पचपन।
पाया सद नवनीत,जरा घृत लाया बचपन।।
-2-
बचपन की गत माधुरी,भूले मानव कौन।
पुनः न करता वापसी, गूँगे का गुड़ मौन।।
गूँगे का गुड़ मौन, शब्दशः क्या बतलाएँ।
जितना बोलें और, भूलते ही कुछ जाएँ।।
'शुभं'लिखें इतिहास,शेष क्या रहता जीवन।
गाथा बने विशाल,महाकाव्यों- सा बचपन।।
-3-
बचपन अंकुर बीज का,बढ़ तरु बना विशाल
पल्लव शाखाएँ बढ़ीं,नित्य बदलती चाल।।
नित्य बदलती चाल, फूल फल कितने सारे।
हैं वरदान स्वरूप, गगन में जितने तारे।।
'शुभम्'वंश-विस्तार,न देखा पचपन-छप्पन।
जड़ भी रहतीं साथ,सचल होता हर बचपन।
-4-
बचपन की तुलना नहीं,करना वय के साथ।
जरा, प्रौढ़, यौवन सभी,वहाँ झुकाते माथ।।
वहाँ झुकाते माथ, और थोड़ा रुक जाता।
मिलता परमानंद, यही कहकर पछताता।।
'शुभम्'सुकोमल रूप,नहीं देती वय पचपन।
ईश्वर की प्रतिमूर्ति,सभी मानव का बचपन।।
-5-
बचपन की निर्दोषता, ईश्वर ही साकार।
हँसी सहज मुस्कान की,समता का आधार।।
समता का आधार, नहीं यौवन में मिलता।
यद्यपि फूले फूल,झड़े वह ज्यों ही खिलता।
'शुभम्'नहीं थिर रूप,प्रौढ़ता नर की पचपन।
बढ़े समयअनुकूल,कहे जग सुंदर बचपन।।
🪴शुभमस्तु!
27.10.2022◆10.15
पतनम मार्तण्डस्य।
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