सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

शरद छा गई ! 🪷 [ बालगीत ]

 424/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कार्तिक  की  चाँदनी  है  नई।

शरद सुहानी सुखद  छा गई।।


जब सूरज   अस्ताचल जाता।

स्वर्ण साँझ उजियारा भाता।।

नीड़ों में जा  छिपे  खग  कई।

शरद सुहानी सुखद छा गई।।


धीरे  -  धीरे   ओस   बरसती।

नहीं  दिखती किंतु सरसती।।

अब न तपन है  जून या  मई। 

शरद सुहानी सुखद छा गई।।


 भीगी  धरती  फसलें  आलू।

नहा    रहे    पौधे     जर्दालू।।

नहीं   पुकारे   मनुज   हा दई!

शरद सुहानी सुखद छा गई।।


निकले कंबल, शॉल, रजाई।

ओढ़ें    बाबा,   ताऊ,  ताई।।

कोहरा - चादर तनी आ छई।

शरद सुहानी सुखद छा गई।।


बाल  काँस   के   बूढ़ी  वर्षा।

मूँज गई  झुक मन भी हर्षा।।

'शुभम्' पुकारें  ग्वाल गौ हई!

शरद सुहानी सुखद छा गई।।


🪴 शुभमस्तु !


17.10.2022◆12.45 पतनम मार्तण्डस्य।


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