394/2022
परहित से जीवन बगिया है! 🪴
[ गीतिका ]
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✍️ शब्दकार ©
🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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जिसने जग - विष सदा पिया है।
मानव बन कर वही जिया है।।
अपना उदर श्वान भी भरते,
दाता जन का वृहत हिया है।
दिया अहर्निश उसने जल को,
फिर भी कहलाती नदिया है।
परछिद्रों में अँगुली डालें,
किंतु साधु ने फटा सिया है।
इधर - उधर ताकाझाँकी क्यों,
सत्कर्मी ने कर्म किया है।
बुरा देखता है औरों का,
जीवन भर वह नर दुखिया है।
'शुभम्' सुगंधों से सुरभित कर,
परहित से जीवन बगिया है।
🪴शुभमस्तु !
03.10.2022◆7.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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