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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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बारह मास दिवाली उसकी,
सुख ही सोना।
सदा निरोगी जिसकी काया,
घर में माया,
आज्ञाकारी संतति सारी,
विरुद सुहाया,
चिंताहीन उऋण जीवन का,
कोना- कोना।
सुख की अलग-अलग परिभाषा,
अपनी - अपनी,
कोई लूट - खसोट खा रहा,
कुव्वत जितनी,
सत का बीज अलग फलता है,
सत ही बोना।
कोई जौंक गिद्ध है कोई,
मच्छर कोई,
कोई रिश्वत नित्य गबन रत,
पके रसोई,
झूठाचार उचित लगता है,
उन्हें न रोना।
नीति - अनीति सभी पहचानें,
सत्य -झूठ क्या!
फिर भी दुख की चादर ओढ़ें,
छोटी त्रिज्या,
सुख - दुख के आँसू में अंतर,
सत्य बिलोना।
🪴शुभमस्तु !
27.10.2022◆6.30
पतनम मार्तण्डस्य।
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