447/2022
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✍️ शब्दकार ©
💌 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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चिठ्ठियाँ वनवास में हैं,
हाथ में जादूगरी।
सिमट कर मुट्ठी में भागा,
भागता ही जा रहा,
पास अब किसके समय है,
चक्र बिन भागे महा,
बात की चलती सुनामी,
बात की बाज़ीगरी।
मोबलाला मोबलाली ,
चुम्बनों का दूरदर्शन,
प्यार की बातें अहर्निश,
चल रही हैं न्यूडवर्जन,
खेत में सब साँड़ - गायें,
चर रहे छुट्टा चरी।
डाकिए जिनके भरोसे,
खा रहे थे रोटियाँ,
दर्पणों के सामने वे,
गुह रही हैं चोटियाँ,
सामने शिक्षक मुबाइल,
दे रहा दृग को तरी।
बात इतनी भर नहीं है,
नोट भी ले दे रहा,
'टीच' करता 'ऑन लाइन',
मुर्गियाँ भी से रहा,
देख कलयुग का करिश्मा,
प्यार की है रसभरी।
🪴शुभमस्तु !
27.10.2022◆1.30
पतनम मार्तण्डस्य।
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