410/2022
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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देह एक ही सबसे सुंदर,
वह मानव कहलाए।
भक्ति भजन का वादा करता,
तब धरती पर आता।
लगती वायु जगत की ज्यों ही,
माया में मदमाता।।
नर खो जाता नारी - तन में,
आपस में बहलाए।
धर्म भूलता मानवता का ,
भटक अन्य में जाता।
सुरा, सुंदरी , धन, ढोंगों में,
अपना समय बिताता।।
मारकाट में खून बहा कर,
जगती को दहलाए।
हिंदू, मुस्लिम, सिख ,ईसाई,
सबकी अपनी ढपली।
अब वसुधा परिवार नहीं है,
ढोंगी माला जप ली।।
मानवता मर रही अहर्निश,
नर ही नर को खाए।
🪴शुभमस्तु !
12.10.2022◆3.30 प.मा.
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