रविवार, 16 अक्तूबर 2022

विधना का विश्वास न जाए! 🛕 [ गीतिका ]

 417/2022


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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कँदुआ    का     होना    मत  होना।

एक      बराबर         हँसना - रोना।।


कर्ता       मत     दे     शस्य  विषैली,

रहे      भार  -  सा      पड़ना  ढोना।


क्यों       आए     कुघड़ी    भी   ऐसी,

गोवंशों         में       कटना    बोना।


ऐसी      खुशी     न    मिले  विधाता,

आजीवन      हो       रुदना -  धोना।


मति     में  विकृति   उपज   न   पाए,

नयनों       में     हो    सपना - लोना।


विधना   का       विश्वास     न  जाए,

पास     न     आए     चकना - टोना।


'शुभम्'    कर्म    सबके   हित के   हों,

नहीं       दिखाए         सपना  सोना।


🪴शुभमस्तु !


16.10.2022◆11.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।



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