417/2022
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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कँदुआ का होना मत होना।
एक बराबर हँसना - रोना।।
कर्ता मत दे शस्य विषैली,
रहे भार - सा पड़ना ढोना।
क्यों आए कुघड़ी भी ऐसी,
गोवंशों में कटना बोना।
ऐसी खुशी न मिले विधाता,
आजीवन हो रुदना - धोना।
मति में विकृति उपज न पाए,
नयनों में हो सपना - लोना।
विधना का विश्वास न जाए,
पास न आए चकना - टोना।
'शुभम्' कर्म सबके हित के हों,
नहीं दिखाए सपना सोना।
🪴शुभमस्तु !
16.10.2022◆11.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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