414/2022
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✍️शब्दकार ©
⛲ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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निधि में मिलती बहते - बहते।
नदी विहँसती कहते - कहते।।
पर्वत का घर छोड़ निरंतर,
पथ पर चलती सहते - सहते।
आती हैं बाधाएँ अनगिन,
जिनगी गलती दहते - दहते।
मिलता है गंतव्य उसी को,
श्रमता फलती लहते - लहते।
'शुभम्' सफल है जीवन उसका,
विपदा टलती सहते - सहते।
🪴 शुभमस्तु !
16.10.2022◆7.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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