बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

प्रभु ही सबके नाथ हैं ⛳ [ दोहा ]

 397/2022


[नेकी,परिधान,अनाथ,सौजन्य,सरपंच]

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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     🪷  सब में एक 🪷

नेकी को मत भूलना,जिसने की हो एक।

कर नेकी तू भूल जा,यही सुखों की टेक।।

नेकी के बदले मिले, सदा बदी यह जान।

जा दरिया में डाल दे,निज नेकी कर दान।।


तन पर हैं परिधान भी, फिर भी नंगी  देह।

अति आधुनिका झूमती, तज मर्यादा  गेह।।

कहती मानव सभ्यता, धर तन पर परिधान।

पशुवत जी मत नारि तू,कहते सत्य सुजान ।।


प्रभु ही सबके नाथ हैं,हर अनाथ के  नाथ।

मत प्रभु को विस्मृत करें,हर क्षण हैं वे साथ।

सेवा  सदा  अनाथ की,देती  पुण्य   प्रताप।

अवसर मिले न चूकना,तज माला का जाप।


भक्ति भजन भगवान का,भीनी भाव सुगंध।

मिलती प्रभु सौजन्य से,मत हो नारी-अंध।

जिन्हें सदा शृंगार का,मिलता है  सौजन्य।

जड़मति होते नारि में,वे जड़ वन के  वन्य।।


सिर पर जिसके सत्य हो,वही सफल सरपंच

पक्षपात घर जाति का,पात्र नहीं   पल  रंच।।

चुनना   हो सरपंच को,देखें चरित - अतीत।

न्याय  करे   वह  ईश  है,बैर न माने    प्रीत।।


  🪷  एक में सब-  🪷

प्रभु    जग    के    सरपंच हैं,

                                  कृपा    -   हस्त  - सौजन्य।

हैं    अनाथ  -परिधान      वे,

                                   उनकी    नेकी       धन्य।।


🪴शुभमस्तु !


05.10.2022◆6.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।


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