430/2022
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✍️शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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फूस छप्पर पर नहीं है,
झाँकता है सूर्य ऊपर,
दीप क्या बारें?
आज खा मन में लगी है,
क्या करें कल क्या करेंगे,
देख व्याकुलता बढ़ी है,
दुःख निज कैसे हरेंगे,
विपति ने की है चढ़ाई,
बंद बच्चों की पढ़ाई,
क्यों नहीं हारें!
दे नहीं विधना गरीबी,
पाँव दे तो सौर भी दे,
भूख से हम बिलबिलाते,
पेट दे तो कौर भी दे,
क्या दिवाली दौज अपना,
है हमारी मौज सपना,
स्वप्न हैं कारें।
चीथड़ों में झाँकती हैं,
देह की पसली सभी ये,
आँसुओं को पी रही हैं,
संगिनी जीवन नई ये,
माँग कर जीना न आता,
स्वेद से दो बीज पाता,
प्रभु हमें तारें।
🪴शुभमस्तु !
19.10.2022◆ 7.30 प.मा.
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