बुधवार, 26 अक्तूबर 2022

क्या बतलाएँ ! ☘️ [ गीत ]

 445/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🍃 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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धन, धनिकों की चकाचौंध में,

दीवाली  का  दीप   खो  गया,

क्या बतलाएँ!


फुटपाथों   के   सुस्त   चेहरे

लटके,   दीये   धरे   माटी के,

ठेलों  पर   विदेश   से  आए,

इतराते   नव    परिपाटी   के,

उतर कार  से नीचे,

खोले  चार  दरीचे,

सँग में पत्नी  जैसी  लगती ,

वे   बतियाएँ!


उपहारों   में   काजू  पिस्ते,

भाते खाते  हैं  मदमाते,

मधुमेही  चीनी  क्यों  खाएँ,

मोदक पेड़ा नहीं सुहाते,

चकाचौंध की बत्ती,

तोला   माशा   रत्ती,

अपने हाथ खिलाते उनको,

कटि मटकाएँ !


आम   आदमी  से जुड़ने में,

'लेबल' गिरता  भारी उनका,

मर्सिडीज  पर  जब  होते हैं,

दिखता है पैदल जन तिनका,

चढ़ -बढ़  गई खुमारी,

उतरे    नहीं    उतारी,

आँखें आप  मुँदी जाती हैं,

लख उबकाएँ!


अति आधुनिका वही आज की,

अंग दिखाए तन के गोरे,

फ़टी जींस टी शर्ट धार तन,

जैसे  बने  जूट  के बोरे,

यही धनिकता छाई,

हवा चली पछुआई,

वे क्यों  डूब  मरें  दरिया में,

हया बुताएँ!


🪴 शुभमस्तु !


26.10.2022◆7.45पतनम मार्तण्डस्य।

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