गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

प्रकाश पर्व दीवाली 🕯️ [ दोहा ]

 428/2022



[ दीपक,वर्तिका,दीवाली, रजनी,रंगोली]


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✍️ शब्दकार ©

🪔 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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        🕯️ सब में एक 🕯️

गुरु दीपक सत ज्ञान का,भरता दिव्य प्रकाश

अंधकार  उसके  तले,रह कर करता    नाश।

 मात पिता दीपक सदा,निज संतति के हेतु।

अंधकार  करते  नहीं, सदा सजीवन  सेतु।।


जननी सुत हित वर्तिका,जलती सभी प्रकार

नेह  नहीं  चुकता  कभी,नहीं मानती   हार।।

बिना वर्तिका तेल क्यों,देता  कभी प्रकाश?

दीपक  के आधार में,भरा- भरा  हो  नाश।।


नेह-दीप   उज्ज्वल करें,दीवाली  का  पर्व।

झोंका  लगे  न  वात का,रक्षा करें   सगर्व।।

अंतर का तम  दूर कर,हितकारी  हों  मीत।

दीवाली   के  दीप  भी, गाएँगे   नवगीत।।


कार्तिक-मावस पावनी,रजनी सौम्य ललाम।

दसकंधर  को  जीत  कर,लौटे  सीता  राम।।

रजनी का तम चीर कर,दीपक करे प्रभात।

संग उषा ले भानु का,रथ लाया  हय  सात।।


गेह - सुमंगल दायिनी, रंगोली  शुभ  नीक।

दीवाली  के दीप  की,पावन प्रबल  प्रतीक।।

गृहणी की रचना 'शुभम्', रंगोली  उपहार।

सोह रही घर-द्वार में,अनुपम विविध प्रकार।


 🕯️   एक में सब   🕯️

रंगोली     दीपक    सजे,

                         दीवाली अभिराम।

जले  वर्तिका  नेह  की,

                    रजनी   बनी  सकाम।।


🪴शुभमस्तु !


18●10●2022◆10.00

पतनम मार्तण्डस्य।


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