452/2022
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✍️ शब्दकार ©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
सूर्य देव को नमामि,उषा देवि को प्रणाम,
करें गंगा में नहान,व्रत निर्जल करें।
रवि पूजें जल बीच,जीव संतति के सींच,
बने संतति महान,दुःख रवि जी हरें।।
माँ कात्यायनि प्रसाद,दूर करें अवसाद,
बढ़े नित्य धन-धान्य,पार भव को तरें।
छठ पूजा सुखदाई,करें सब पितु माई,
नारी नरहू सुजान, त्रिदेव जी संचरें।।
-2-
सूर्य अग्नि कौ महान,दिव्य रूप है प्रमान,
जनि रहौ है जहान,मातु छठ पूजिए।
मध्य नदी या तड़ाग,पूज छठ बड़भाग,
साथ पति कौ सुहाग,और नहिं दूजिए।।
प्रथम नहाय-खाय,बाद खरना पुजाय,
पूर्ण निर्जला व्रताय,सत्यव्रती हूजिए।
होय शुद्ध मन गात,करें निर्मित प्रसाद,
चूल्हा माटी का जलात,आम्र काष्ठ भूँजिए।।
-3-
छठ पूजा उपचार,रहें भक्त निराहार,
खीर तंदुली गुड़ार,का प्रसाद पाइए।
ठाड़े रहें नदी तोय,भक्ति प्रार्थना में खोय,
परवातिन जो होय,अर्घ्य हू लगाइए।।
नारी-नर हू जवान,थाम पर्व की कमान,
चाहें वृद्ध या किसान,मत शरमाइये।
निरोगता बढ़े-चढ़े, पर्यावरण में मढ़े,
उत्सवी शुचि सोपान, संतति दृढ़ाइए।।
-4-
प्रथम ऋग्वेद कहै, सूर्य एक देव अहै,
कौन नहीं तेज चहै,करें सूर्य उपासना।
आरोग्य के हैं देवता,भक्त जिन्हें सु-सेवता,
रोग दोष दूर दहै,त्याग दे कु -वासना।।
उदयास्त सूर्य देव,अर्घ्य देय करें नेम,
स्वच्छ करें निज गेह,लौकी कद्दू राँधना।
सेंधा नमक मिलाय, सबै भोजन पकाय,
बाद में नहाय-खाय, बैगननु ना बना।।
🪴 शुभमस्तु !
29.10.2022◆11.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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